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लहंगर उपार्जन केन्द्र में हुए हजारों क्विंटल का फर्जी पंजीयन में लाखो का घोटाला हुआ

फर्जी पंजीयन के बाद कैसे हुई फर्जी पंजीयन में धान खरीदी

संपादक कुंज कुमार रात्रे महासमुंद – छत्तीसगढ सरकार को लाखो करोड़ो का चूना लगाने मे कोई कसर नही छोड़ा लहंगर समिती ने जहा का फर्जीवाड़ा सैकड़ों नही हजारों क्विंटल तक चला गया लेकिन किसी को भनक तक नहीं लगा जबकि महासमुंद जिले मे कई उपार्जन केन्द्रों में फर्जी पंजीयन को लेकर प्रशासन ने कड़ी कार्यवाही की है लेकिन उसके बाद भी लहंगर उपार्जन केन्द्र में हुए हजारों क्विंटल का फर्जी पंजीयन में लाखो का घोटाला हुआ और फर्जी पंजीयन से लगभग 30 लाख रूपये गटक गए अपको बता दे महासमुंद जिले के लहंगर उपार्जन केन्द्र मे 23- 24 में रामेश्वर वैष्णव, सरस्वती वर्मा, हेमनत चंद्राकर, नवीन कुमार, दाऊ लाल चंद्राकर, तोषन कुमार सेन, जैसे दर्जनों किसान के नाम पर दो तरह से फर्जी पंजीयन को अंजाम दिया गया एक फर्जी रकबा तो दूसरा नियम के विरुद्ध पंजीयन जहा लगभग दर्जनों ऐसी किसान का पंजीयन किया गया जिसमें किसान की हकदार भूमि महज 2 एकड़, 3 एकड़,5 एकड़, लेकिन पंजीयन किया गया 2 एकड़ किसान वाले पंजीयन में 10 से 15 एकड़ 20 एकड़ तक बनाया गया और वही दूसरे तरह से भी खूब शासन को गुमराह कर मोटी रकम कमा लिया गया जहां ट्रस्ट तक की भूमि को नियम के विरुद्ध फर्जी पंजीयन कर लाखो की हेरा फेरी किया गया बहुत ही आसानी से दर्जनों फर्जी पंजीयन करा कर लहंगर समिती में धोखाधड़ी को अंजाम दिया गया जिसमे लगभग 100 एकड़ से भी ज्यादा फर्जी पंजीयन कर लगभग 1500 क्विंटल से भी अधिक धान बेचा गया और सरकार को लाखो रूपये का चूना लगाया गया  पंजीयन की क्या है प्रक्रिया

पंजीयन दो स्थानों में होता है एक समिती माड्यूल खुद प्रबंधक ऑपरेटर करता है तो दूसरा तहसील माड्यूल से किया जाता है जो सीधे तहसीलदार आई डी तहसील कर्मचारी द्वारा कराया जाता है अब सबसे बडा सवाल की आखिर फर्जी पंजीयन कहा से अंजाम दिया गया समिती या तहसील? ये सबसे बडा सवाल है और जांच का विषय है जहा सूक्ष्म जांच कर बडा फर्जीवाड़ा का पर्दाफाश किया जा सकता है

फर्जी पंजीयन के बाद कैसे हुई फर्जी पंजीयन में धान खरीदी

पहली प्रक्रिया पंजीयन का रहा जहा फर्जी पंजीयन को आखिर किसने अंजाम दिया गया ये तो जांच के बाद खुलासा होगा लेकिन वही प्रदेश की सरकार ने शख्त निर्देश दिया था की फर्जी पंजीयन, बोगस धान की खरीदी बिक्री में अंकुश लगाने है उसके लिए बकायदा जिला प्रशासन ने भी समिती प्रबंधक को साफ निर्देश दिया गया था की धान खरीदी करते वक्त एक एक पंजीयन की जांच करने है दूसरी प्रक्रिया हर वर्ष कैरी फॉरवर्ड करने होते है उसमे अगर कहीं फर्जीवाड़ा मिलता है तो उसे काटने का निर्देश था लेकिन नहीं काटा गया उसके बाद धान खरीदना है अगर कहीं से फर्जी पंजीयन हुआ होगा तो जांच कर काटने और उस पंजीयन मे फर्जी रकबा की कटौती कर खरीदी करने का निर्देश दिया है अब ऐसे में सवाल यह खड़ा होता है की फर्जी पंजीयन के बाद भी बेहिचक धान खरीदा किया गया और खरीदी फर्जीवाड़ा को समिती ने अंजाम दिया अब देखना होगा की ऐसे हजारों क्विंटल फर्जीवाड़ा को जिला प्रशासन कैसे अंकुश लगता है खबर प्रकाशित होने के बाद जिला प्रशासन क्या कार्यवाही करती है भाग दो में दिखाएंगे अपको पूरी डाटा

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