छत्तीसगढ़

गुरु घासीदास जी ने सत्य, अहिंसा, करुणा और प्रेम से मनखे-मनखे एक समान के सिद्धांत को प्रतिपादित किया- राशि महिलांग 

सामाजिक सद्भावना का मार्ग दिखाते हुए कहा ईश्वर सबके हृदय के भीतर है - सतीश मधुकर 

संपादक कुंज कुमार रात्रे खैरा महासमुंद स्थानीय वार्ड क्रमांक 4 नयापारा में स्थित जैत स्तंभ में परम् पूज्य बाबा गुरु घासीदासजी की 268 वीं जयंती का आयोजन साल के अंतिम दिवस की विदाई के साथ नव वर्ष में सभी लोगों के मंगल स्वास्थ्य की दीर्घायु होने की कामना करते हुए बड़े ही उत्साह एवं उमंग के साथ उल्लासमय वातावरण में मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ परम पूज्य बाबा गुरु घासी दास जी के जैतस्तंभ में पालो चढ़ाने के पश्चात सामूहिक मंगल आरती की गई जिसमें शहर की प्रथम नागरिक एवं नगर पालिका अध्यक्ष श्रीमती त्रिभुवन राशि महिलांग ने सतनामी समाज की महिलाओं के साथ पूजा अर्चना कर सर्वहारा समाज की समृद्धि एवं खुशहाली के लिए बाबाजी से आशीर्वाद लिया।  उक्त कार्यक्रम में मुख्य अतिथि की आसंदी से सर्व समाज को संबोधित करते हुए राशि महिलांग ने कहा कि बाबा गुरु घासीदास जी एक महान आध्यात्मिक गुरु और समाज सुधारक थे, जिन्होंने 18 वीं शताब्दी में छत्तीसगढ़ क्षेत्र में सतनामी समाज की स्थापना की। गुरु घासीदास जी ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत एक साधारण ग्रामीण के रूप में की। आध्यात्मिक गुरु होने के नाते उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों, अस्पृश्यता,असमानता और अन्याय को दूर कर लोगों को एकता, समानता और न्याय के महत्व के बारे में शिक्षित किया। उन्होंने लोगों को सत्य, अहिंसा, करुणा और प्रेम के माध्यम से मनखे-मनखे एक समान के सिद्धांत का प्रतिपादन किया उन्होंने किसी भी जाति, धर्म या लिंग के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं करने पर बल दिया।उतद्बोधन की इसी कड़ी में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे श्रीमती नूतन कुर्रे ने कहा कि गुरु घासीदासजी की विरासत आज भी जीवित है सतनामी समाज उनकी शिक्षाओं को आगे बढ़ा रहा है और लोगों को एकता, समानता और न्याय के महत्व के बारे में शिक्षित कर रहा है क्त कार्यक्रम में वार्ड क्रमांक 5 की पार्षद कमल बरिहा ने गुरु घासीदासजी के विचारों को बताते हुए कहा कि समाज में फैली आर्थिक विषमता, शोषण, जातिगत भेदभाव, और अस्पृश्यता को खत्म करने के लिए ‘मनखे-मनखे एक समान’ का संदेश दिया साथ ही उन्होंने लोगों को सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा दी। उद्बोधन की इसी कड़ी में सतीश मधुकर ने कहा कि बाबा जी ने अपने ज्ञान और शक्ति का इस्तेमाल मानवता की सेवा में करने की सलाह दी।उन्होंने लोगों को सत्य, अहिंसा, और सामाजिक सद्भावना का मार्ग दिखाया। उन्होंने लोगों को मांस-मदिरा का सेवन नहीं करने, सामाजिक कुरीतियों को दूर करने, शांति एवं अहिंसा के पथ पर चलने का संदेश दिया।उन्होंने कहा था कि अपने भीतर के ईश्वर को खोजो उसे देखो, ईश्वर सबके हृदय के भीतर मिल जाएगा। गुरु घासीदासजी ने सतनाम पंथ की स्थापना की सतनाम पंथ में मूर्ति पूजा का निषेध, हिंसा का विरोध, व्यसन से मुक्ति, पर स्त्री गमन की वर्जना और दोपहर में खेत न जोतना जैसे नियम बनाए थे।कार्यक्रम के अंत में समस्त समाज जनों के द्वारा नूतन वर्ष पर पंथी नर्तकों के साथ पंथी नृत्य गीत का आयोजन किया गया साथ ही मध्य रात्रि को केक काटकर विभिन्न मनोरंजन कराके गीतों की प्रस्तुति दी गई।  उक्त कार्यक्रम में प्रमुख रूप से विशेष अतिथि के रूप में राहुल आवडे, कुलंजन सोनटके, पवन निर्मलकर, संत दिनेश मिर्चें, तारिणी वर्मा, भगवंतिन मधुकर, गणेशी ध्रुव, भूमिका ध्रुव, हितेश आवड़े, ममता आवड़े, राधेश्याम खूंटे, भीम टंडन, दीपक मधुकर, रत्नसेन प्रभाकर, देवेंद्र मिर्चें, सरोजिनी बाई, संगीता टंडन, निर्मला प्रभाकर, रविंद्र टंडन एवं लता कुमारी सहित समस्त समाजजन उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन योगेश कुमार मधुकर ने एवं आभार प्रदर्शन पुकराम बारले ने किया।

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