छत्तीसगढ़

सामाजिक बहिष्कार-आर्थिक दंड के खिलाफ एकजुट हुआ प्रदेश संगठन: कहा-यह किसी भी समाज के लिए शर्मनाक 

कुंजूरात्रे महासमुंद ,8 सितंबर। प्रदेश संगठन अहिरवार समाज की बैठक में सर्वसम्मति से सामाजिक दंड प्रथा में संशोधन करते हुए पीडि़त पक्ष से आर्थिक दंड नहीं लेने तथा समाज से बहिष्कृत करने के नियमों को तत्काल खत्म करते हुए ऐसे निर्णय लेने वाले स्थानीय संगठनों के खिलाफ अपराध दर्ज कराने का निर्णय लिया है।   संगठन बैठक में पहुंचे लोगों का कहना है कि अहिरवार समाज में अंतरजातीय विवाह करने वाले युवक युवतियों और उसके परिवार को समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है। बहिष्कृत परिवार में गरीब मजबूर तबके के लोग ज्यादा हैं। जबकि धनाड्य और समाज में वर्चस्व वाले लोग ऐसे दंड से बच जाते हैं। पीडि़त पक्ष से कहीं पर पच्चीस हजार,कहीं पर पचास हजार और कहीं पर एक एक लाख रुपए अर्थदंड लिये जाते रहे हैं। आर्थिक दंड नहीं देने पर पीडि़त पक्ष के परिवार को समाज से बहिष्कृत कर लगातार प्रताडि़त किया जाता है, उनसे बातचीत और रोटी बेटी तक खत्म कर दी जाती है। यहां तक पीडि़त के घर में किसी की मौत पर शव को कांधा देने भी लोग नहीं जाते। इस पर प्रदेश संगठन का कहना है कि शासन-प्रशासन कानूनी तौर पर अंतर जातीय विवाह को प्रोत्साहन के तौर पर युवाओं को लाखों रुपए देती है, और स्थानीय तौर पर इस नियम के विपरीत समाज के मुखिया मोटी रकम वसूलते हैं। हालांकि प्रदेश संगठन का सूत्र वाक्य समाज में ही रोटी-बेटी को प्राथमिकता देना है। लेकिन यदि ऐसा होता है तो उन्हें मानसिक और आर्थिक प्रताडऩा देना हरगिज नहीं है। यह किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मनाक है ।बैठक में उपस्थित सदस्यों ने कहा कि ऐसा भी नहीं है कि दंड की राशि को समाज के हित में खर्च किए जाते हों, बल्कि दंड की राशि से समाज सुधारक अपनी जेबें भरते हैं। उक्त राशि का कोई हिसाब नहीं होता। सरकारी कानून से बचने कुछ स्थानों पर दंड की राशि को दान की राशि का नाम दिया जाता है। दंड की राशि देने वाले अधिकांश परिवार की आर्थिक स्थिति पहले से ही काफ ी कमजोर होती है। ऐसे में बहुत से लोगों ने अपना घर, जमीन बेचकर समाज को दंड की राशि अदा की है।

रायपुर में आयोजित संगठन की इस बैठक में समाज की एक ऐसी बेटी पहुंची थी जिन्हें अंतर जातीय विवाह करने की वजह से समाज से बहिष्कृत कर दिया गया। दादा की मौत पर उन्हें कफ न ओढ़ाने की सजा आर्थिक दंड देकर भुगतना पड़ा। वह महिला शादी के बाद से अब तक समाजिक बैठकों में समाज में रहने का गुहार लगा रही है। लेकिन समाज है कि उससे लाख रुपए से कम दंड पर समाज में मिलाने तैयार नहीं है। अब तो उस महिला का एक बच्चा भी है, वह चाहती है कि माता-पिता की उम्र हो रही है। अत: दादा की तरह कहीं ऐसा न हो जाए कि माता-पिता का भी दूर से अंतिम दर्शन करना पड़े। परिवार के लिए इसलिए वह समाज में मिलना चाहती है। मालूम हो उक्त महिला के आर्थिक दंड के लिए परेशान करने संबंधी पर्याप्त सबूत लेकर बैठक में पहुंची थी। संगठन अब इन्हीं सबूतों के साथ कानून का दरवाजा पहुंचने के लिए तैयार हैं साथ ही महिला आयोग तक इस तरह के मामले पहुंचाने के लिए प्रयासरत है।

संगठन ने समाज के सभी लोगों से अपील की है कि अर्थदंड लेना देना और सामाजिक बहिष्कार दोनों अपराध है। अत: ऐसे मामलों में संगठन के सदस्यों को सूचना दें। प्रदेश संगठन अहिरवार समाज छत्तीसगढ़ की इस बैठक में स्वप्नदृष्टा धनेश टांडेकर, अध्यक्ष चोवा राम टांडेकर, महासचिव गीता टांडेकर झुलपे समेत समस्त पदाधिकारी उत्तरा विदानी, रामबिलास टान्डेकर, चन्द्रकुमार विदानी, अरूणा टान्डेकर,शिवराम टान्डिया, अतुल अहिरवार, यादराम टान्डेकर, माधव टान्डेकर, किरण टान्डेकर, राकेश चौरे, रंगीता चौर, साधना टान्डेकर,तिलक बिझेंकर, अशोक जगने, राधा जगने, नितेश चौरे, विक्की कन्नौजे, हिमाशु कन्नौजे, भागवत टान्डेकर, चंद्रकांत विदानी, होरी लाल अहिरवार,रूद्र प्रताप चौरे, लीलाराम चौधरी, रोहन टान्डेकर,संगीता चौरे, तिलशिया टान्डेकर, बन्ना टान्डेकर उपस्थित थे.

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