छत्तीसगढ़

मानवाधिकार के सिद्धांतों को समझने और उनकी रक्षा करने के लिए हम एक न्यायपूर्ण और समानतापूर्ण समाज की स्थापना कर सकते हैं — योगेश मधुकर 

संपादक कुंज कुमार रात्रे महासमुंद छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक शहीद वीर नारायण सिंह की 167 वीं शहादत दिवस एवं 10 दिसंबर को आयोजित विश्व मानवाधिकार दिवस का संयुक्त आयोजन शासकीय उच्च प्राथमिक शाला चिंगरौद में समस्त छात्र-छात्राओं एवं शिक्षकों की उपस्थिति में मनाया गया।

उक्त कार्यक्रम को संबोधित करते हुए शिक्षक योगेश कुमार मधुकर ने कहा कि आज ही के दिन विश्व मानवाधिकार दिवस के महत्व को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने के लिए इस दिवस को मनाया जाता है। इस दिवस का इतिहास 10 दिसंबर 1948 को शुरू हुआ जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणापत्र को अपनाया था। यह घोषणापत्र मानवाधिकारों के मूल सिद्धांतों को परिभाषित करता है, जिनमें जीवन, स्वतंत्रता, और सुरक्षा का अधिकार शामिल है ।

विश्व मानवाधिकार दिवस के अवसर पर विभिन्न देशों में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें मानवाधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाने और उनकी रक्षा करने के लिए विभिन्न गतिविधियाँ शामिल होती हैं जिसमें जीवन, स्वतंत्रता, और सुरक्षा का अधिकार, समानता और न्याय का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार, शिक्षा और स्वास्थ्य का अधिकार, सामाजिक और आर्थिक विकास का अधिकार शामिल है अन्त में उन्होंने कहा कि इन सिद्धांतों को समझने और उनकी रक्षा करने के लिए समाज में हम एक न्यायपूर्ण और समानतापूर्ण समाज की स्थापना कर सकते हैं।

उक्त कार्यक्रम को संबोधित करते हुए शिक्षक डीगेश कुमार ध्रुव एवं पोखन लाल चंद्राकर ने शहीद वीर नारायण सिंह का संक्षिप्त जीवन परिचय बताते हुए बच्चों से कहा कि वह एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उनका जन्म 16 नवंबर 1795 को छत्तीसगढ़ के सोनाखान में हुआ था। वर्तमान में यह क्षेत्र जिला बलौदा बाजार के अंतर्गत आता है। वीर नारायण सिंह ने 1857 के सिपाही विद्रोह में अपने साथियों के साथ भाग लिया और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। जिसे 10 फरवरी 1857 को वीर नारायण सिंह को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें रायपुर स्थित जय स्तंभ चौक में सरेआम फांसी की सजा सुनाई गई थी। वीर नारायण सिंह ने फांसी के तख्ते पर खड़े होकर कहा, “मैं अपने देश की स्वतंत्रता के लिए मरने के लिए तैयार हूँ इसके बाद उन्हें फांसी दे दी गई थी। उनकी शहीदी के बाद, उन्हें एक महान स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सम्मानित किया गया।

कार्यक्रम का संचालन योगेश कुमार मधुकर एवं आभार प्रदर्शन वरिष्ठ शिक्षक पोखनलाल चंद्राकर ने किया। इस अवसर पर समस्त छात्र-छात्राएं एवं शिक्षकगण उपस्थित थे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button