आज 24 जुलाई है और अब तक कुर्सियों को स्कूलों तक नहीं पहुंचाया गया है।
कुंजूरात्रे महासमुंद महासमुंद जिला प्रशासन की लापरवाही देखिये कि लोकसभा चुनाव के दौरान मतगणना के लिए स्कूलों में बच्चों के बैठने के लिए रखी गई सैकड़ों कुर्सियां- टेबलों और कई स्कूलों से प्रधान पाठक तक के बैठने की रिवाल्विंग कुर्सियां उठा तक ले गए और मतगणना निपटने बाद उन्हें स्कूलों तक लौटाना भूल गए।
जानकारी अनुसार मतगणना के बाद स्कूलों के प्राचार्य और शिक्षक जिला प्रशासन से लगातार कुर्सी टेबलों को वापस करने की मांग करते रहे, पत्र व्यवहार भी किया। लेकिन किसी ने भी इस पर कोई पहल नहीं। स्कूल खुलने के बाद भी किसी का ध्यान इस ओर नहीं रहा। अब हालात यह है कि बारिश जारी है और बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं। इस बारिश में बच्चों के जमीन पर बैठने का श्रेय जिला प्रशासन को जाता है.
इस मामले की खबर ‘छत्तीसगढ़’ को पंद्रह दिनों पहले लगी थी। ‘छत्तीसगढ़’ ने खबर मिलते ही पहले कलेक्टर प्रभात मलिक को इसकी जानकारी दी और कुर्सी टेबलों को स्कूलों तक पहुंचाने की मांग की।
इस पर कलेक्टर ने कहा कि जल्दी ही विभागीय अफसरों से इस बारे में बात करता हूं। इसके तुरंत बाद ‘छत्तीसगढ़’ ने जिला शिक्षा अधिकारी मोहन राव से बात की तो उन्होंने कहा था-मैं बाहर हूं आप हमारे विभाग के अफसर नंदकुमार सिन्हा जी से बात कर लीजिएगा।
अतः ‘छत्तीसगढ़’ ने शिक्षा विभाग के अधिकारी नंदकुमार सिन्हा से बात की तो उन्होंने कहा कि मुझे पता नहीं है फिर भी कोशिश करता हूं। एक अधिकारी ने तो यह भी कहा कि स्कूलों तक टेबल कुर्सियां पहुंच जाएंगी, आप इसे अखबार में प्रकाशित मत कीजिए,बेकार बात का बतंगड़ बनेगा। इतना कहने के बाद कलेक्टर से लेकर अधिाकरी तक सभी अपने वादे भी भूल गए। फोन पर ऐसी बात हुए पंद्रह दिन बीत गये हैं, लेकिन अधिकारियों के वादे तो वादे होते हैं, वादों का क्या?
यह तस्वीर जिला मुख्यालय के पास ही छह किलोमीटर दूर स्थित सोरिद स्कूल की तस्वीर है। आज ‘छत्तीसगढ़’ वहां पहुंचा, तो टेबलकुर्सी के अभाव में सातवीं कक्षा के बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ाई कर रहे थे। वहीं स्टेशन पारा स्कूल के प्राचार्य टेबल पर बैठकर अपना काम निपटा रहे थे।
मतगणना के वक्त जिला प्रशासन ने शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला सोरिद से 60, बम्हनी हायर सेकंड्री स्कूल से 60, लाफिन खुर्द हाई स्कूल से 30, मिडिल स्कूल लाफिन खुर्द से 33, शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला स्टेशनपारा से 39 कुर्सी-टेबल की व्यवस्था की थी। बच्चों की इन कुर्सियों के भरोसे जिला प्रशासन ने मतगणना भी करा दी और कुर्सी टेबलों को स्कूलों में पहुंचाने की कोशिश तक नहीं की।
तमाम स्कूल के शिक्षकों ने बातचीत में कहा कि 4 जून को मतगणना के बाद से कुर्सी टेबल को स्कूलों तक पहुंचाने की मांग की जा रही है। लेकिन अधिकारियों की लापरवाही देखिये कि मतगणना के बाद 16 जून स्कूल खुलने के वक्त तक उनके पास पूरे 12 दिन थे कुर्सियों को स्कूलों तक पहुंचाने के लिए।
ठीक है कि गर्मी की छुट्टी के बाद स्कूल खुल गए। लेकिन बारिश शुरू हुई, तब भी अधिकारियों को बच्चों की हालत पर तरस नहीं आई।आज 24 जुलाई है और अब तक कुर्सियों को स्कूलों तक नहीं पहुंचाया गया है। उन्हें इस खबर को किसी अखबार में छप जाने की चिंता भी नहीं है। खबर प्रकाशन के बाद शायद उनकी तंद्रा टूटे और बच्चों को कुर्सी टेबल नसीब हो सके। बहरहाल देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चे गीली जमीन पर बैठकर पढ़ाई करने मजबूर हैं।