विशिष्ट पहचान स्थापित करता है। वह एक शिक्षक ही है
कुंजूरात्रे महासमुंद कहते हैं कि शिक्षक एक चाक के पहिए की तरह होता है और उसके छात्र एक मिट्टी की तरह। जिस तरह चाक रूपी पहिए से शिक्षक अपने ज्ञान और बुद्धि के द्वारा उस मिट्टी अर्थात बच्चों में अपने सृजनात्मक ज्ञान का संचार कर उन्हे अनेक प्रकार की शिक्षाओं में पारंगत कर विद्वता की श्रेणी में समाज में एक अहम स्थान प्रदान कराने में अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित करता है। वह एक शिक्षक ही है उपरोक्त बातें शिक्षक योगेश कुमार मधुकर ने कही।
उनका मानना है कि आज के दौर में एक शिक्षक किसी भी परिचय का मोहताज नहीं है , फिर भी मेरे निजी विचारधारा के अनुसार आज शिक्षकों की पहचान के लिए राज्य शासन द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए है। शिक्षक पोर्टल में केवल स्कूल डाइस कोड़ के आधार पर एक एम्पलाई कोड़ जनरेट करके शिक्षकों की योग्यता संबंधी सारी जानकारी को अपलोड कर दिया गया है।
लेकिन इसके अलावा आज भी कई स्थानों पर लोग शिक्षकों के द्वारा अपना परिचय कराने के बावजूद उन्हें नजरंदाज कर देते हैं। जिससे वे अपने आप में अपमानित महसूस करते हैं। समाज में शिक्षकों की भूमिका सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर होनी चाहिए।
शिक्षक योगेश मधुकर ने कहा कि अन्य कार्यालयीन व व्यवहारिक तौर पर शिक्षकों को आज पर्यंत तक स्कूल आईडी के रूप में परिचय पत्र राज्य शासन के शिक्षा विभाग तथा उच्च अधिकारियों के द्वारा प्रदान नहीं किया गया है यह समझ से परे है ,आज आप किसी प्राइवेट व अन्य विभाग में जाकर देखिए वहां के कर्मचारियों को उस विभाग के द्वारा एक ड्रेस कोड व आईडी प्रदान की जाती है जिसके माध्यम से उसकी पहचान सुनिश्चित की जाती है। मैं यह नहीं कहता कि एक आईडी व ड्रेस कोड के माध्यम से ही उस व्यक्ति या कर्मचारी की पहचान होती है। लेकिन आज के दौर में जिस तरह बच्चों की शिक्षाओं के लिए अलग -अलग शिक्षण संस्थान हैं उनके यूनिक ड्रेस कोड हैं, ठीक इसी तरह प्राइवेट तथा सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के लिए भी एक यूनिक ड्रेस कोड़ व पहचान के लिए एक आईडी प्रूफ (परिचय पत्र) का होना अनिवार्य है। जिससे यह आसानी से पता चल सकेगा कि अमुक शिक्षक या शिक्षिकाएं छत्तीसगढ़ राज्य के किस जिले व तहसील के स्कूल के अंतर्गत पदस्थ हैं।
मेरा कहने का आशय यह है कि आज लुण्ड्रा-सरगुजा जिले का एक शिक्षक जिस तरह अपने पहनावे के कारण विकास खण्ड शिक्षा अधिकारी के निरीक्षण के दौरान शोकाज नोटिस से आहत हुआ है भविष्य में किसी भी शिक्षकों के साथ यह वाक्या दुबारा घटित हो सकता है चाहे इसमें कोई शिक्षक की ही गलती क्यों ना हो ?? आज स्कूलों में अधिकांश शिक्षक व शिक्षिकाएँ अपने मनपसंद के वस्त्र पहन कर आते है जिसमें बंगाली-पजामा, फॉर्मल पैंट-शर्ट, जींस-टी शर्ट व जींस- शर्ट, सलवार-कुर्ती, जींस-कुर्ती तथा साड़ियां प्रमुख रूप से शामिल हैं। आज के दौर में हम सभी अपने खान-पान, रहन-सहन, वेशभूषा और आचार -विचार में पाश्चत्य सभ्यता और संस्कृति को बढ़ावा दे रहें हैं जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी इसी तारतम्य में पाश्चत्य सभ्यता की ओर बढ़ रही है। जिससे समाज व परिवार के बीच आपसी सौहार्द की भावना टूटती जा रही हैं। इस पर अंकुश लगाना चाहिए। इसके लिए स्वयं में बदलाव लाना बेहद जरूरी है।
शिक्षक श्री मधुकर ने कहा कि शिक्षा एक ऐसा हथियार है जिसके द्वारा हम नए-नए आयाम स्थापित कर सकते हैं। इसके लिए शिक्षा विभाग और राज्य शासन को गंभीरता से विचार करना चाहिए। साथ ही सभी शिक्षक और शिक्षिकाओं के लिए एक जैसा ड्रेस कोड का निर्धारण कर दिया जाए तो यह अनुचित नहीं होगा। क्योंकि स्कूल के बच्चों के साथ-साथ एक शिक्षक भी अनुशासित ढंग से अपने संयमित और सुसज्जित वस्त्र धारण कर नियमित शिक्षा के मंदिर में पदार्पण होगा जिससे शिक्षक व छात्रों के बीच आपसी समन्वय तथा एकरूपता की भावना का विकास होगा।
जिस तरह हम बच्चों को शैक्षणिक गतिविधियों के अलावा शारीरिक, मानसिक-योग, बौद्धिक, नैतिक, व्यवहारिक, सांस्कृतिक शिक्षाओं का पाठ पढ़ाते हैं। उनको हमेंशा स्कूल ड्रेस, चप्पल-जूते पहनकर आने, नाखून काटने, सुसज्जित बाल कटवाने, शरीर की नियमित साफ-सफाई के लिए प्रेरित करते हैं तो क्या हम भी अपने अंदर यह बदलाव नहीं ला सकते।
शिक्षक श्री मधुकर ने कहा कि जैसा संस्कार आप बच्चों को दोगे वैसा ही मान और सम्मान आप दूसरों से पाओगे। उन्होंने कहा है की इस आशय की सूचना राज्य शासन व प्रदेश के मुखिया माननीय मुख्यमंत्री विष्णु देव साय जी को तथा उच्च शिक्षा मंत्री व शिक्षा सचिव को एक पत्र लिखकर अवगत कराएंगे।