छत्तीसगढ़

मन चंगा तो कठौती में गंगा संत शिरोमणी रविदास महराज

।महासमुन्द संत शिरोमणी रविदास महाराज जी ने कहा ” सारा जग चमार” चमार कहने वालों को जवाब दिया संसार में जिस भी जीव जंतु के शरीर का निर्माण चाम से हुआ है वह सभी मनुष्यों के साथ जग के सभी जीव जन्तु चमार है।मन चंगा तो कठौती में गंगा रविदास महराज के इस कहावत में भी चमत्कारी कथा नहीं है बल्कि लोगों से आह्वान किया कि कहीं जाने की जरूरत नहीं है सभी जगह की जल एक ही है।फिर भी कुछ लोग इस महान तार्किक समाज सुधारक को लोग भक्ति धारा में जोड़ दिया। जबकि उनके शिष्या मीरा बाई ने में भी राजा के द्वारा दिए जाने वाले जीव बलि का विरोध किया। राजा के यहां कथित विद्वान पंडितों से तर्क करने लग गई अर्थात संत रविदास द्वारा पाखंडवाद ,जाति श्रेष्ठता के खिलाफ चलाए गए आंदोलन से मानवता वादी मीरा बाई बेहद प्रभावित होकर अनुयाई बन गई। जिससे मीरा बाई के राज परिवार में हड़कंप मच गया कि बड़ी जाति के मीरा बाई एक कथित छोटी जाति के रविदास के समाज सुधार में शामिल हों गई इसलिए विभिन्न प्रकार से षड्यंनीति-नियत नेतृत्व मानव समाज में नीति एवं नियत,ये दोनों शब्द किसी भी छेत्र में व्यवस्था व उनके संचालन में आधार माना जाता है।नीति शब्द भावार्थ, मानवीय वैचारिक गुणधर्म के अनुसार व्यवहारगत आचरण नियमावली होता है।

नियत” शब्द का भावार्थ,मानव के आंतरिक मनोदशा होता है। जो मानव समाज में नकारात्मक या सकारात्मक दृष्टिकोण दोनों हो सकता है। जो किसी व्यक्ति के मन में भावना निजी स्वार्थ या समाज हित परमार्थ दोनों हो सकता है।

भारतीय सामाजिक व्यवस्था में किसी भी जाति समाज,कुटुम्ब के समाज संगठन द्वारा समाज सेवा के क्षेत्र में नीति,नियम,नेतृत्व,संचालन, संरचना,परम्परागत होता है। जिसमें नेतृत्व कर्ता पदाधिकारी गणों के नियत सकारात्मक सोच विचार होना अनिवार्य होता है। यह समाज सेवा का छेत्र में किसी भी पदाधिकारी का मन की नियत मनोदशा समाज हित में केवल परमार्थ भावना का ही होता है।*

समाज के यह छेत्र केवल व केवल नीति व नियत सकारात्मक होता है।

समाज के छेत्र में स्वार्थ भावना,या स्वार्थी जनों का कोई स्थान नहीं होता। और स्वार्थी जन को समाज सेवा के क्षेत्र में प्रतिभागी नही होना चाहिए।

*समाज संगठन सेवा का छेत्र केवल व केवल परमार्थी जनों का छमता का विषय वस्तु है। जिस व्यक्ति के आंतरिक मनोदशा समाज सर्वांगीण हित में नि:स्वार्थ हमेशा तन मन धन से अपना जीवन समर्पण करने का भाव “नीयत” होता है। वही सामाजिक व्यक्ति,समाज सेवा के “नेतृत्व” लायक समझा जा सकता

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