जमीन के हेरा फेरी के लिए राजस्व अभिलेखों में कूट रचना की बात तो सुनी होगी,
कुंजूरात्रेमहासमुंद जमीन के हेरा फेरी के लिए राजस्व अभिलेखों में कूट रचना की बात तो सुनी होगी, पर केवल लोगों को फसाने के लिए राजस्व अभिलेखों में कूट रचना का आरोप आपको आश्चर्यचकित कर देगा. ऐसा ही अनोखा मामला ग्राम टेगंनपाली थाना बलौदा तहसील सरायपाली का सामने आया है यहां के निवासी छेलिया पिता जगबंधु ने थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई की भोजराज, लोकनाथ आदि ने खसरा नंबर 241/2 रकबा 0.06 हे. की भूमि फर्जी दस्तावेज के आधार पर अपने नाम दर्ज करवाई है. सबूत बतौर नामांतरण पंजी 2010 और 2016 में रजिस्ट्री बैनामा क्र.3352/2584 दिनांक 20/5/2009 के अनुसार छेलिया से भोजराज को विक्रय किया गया. छेलिया ने रजिस्ट्री आफिस का प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया जिसमें उक्त बैनामा क्रमांक की कोई रजिस्ट्री नहीं होनी नहीं बताई गयी मतलब नामांतरण पंजी के आदेश को झूठा बताया गया और fir दर्ज किया गया. मामले में नया मोड़ तब आया जब बचाव पक्ष ने रा. मा. क्र. 9/अ -5/2005-06 आदेश दिनांक 19/3/2007 की सत्यप्रतिलिपि प्रस्तुत की जिसके अनुसार बंदोबस्त त्रुटि के आदेश के अनुसार खसरा नंबर 241/2 को भोजराज के नाम किया जाना बताया गया मतलब नाम परिवर्तन विधि पूर्वक किया जाना बताया गया. मतलब जब नाम में परिवर्तन विधि के अनुसार हुआ है तो नामांतरण पंजी के आदेश में फर्जी प्रविष्टि कर नाम परिवर्तन को फर्जी सिद्ध करने का क्यों प्रयास किया गया जबकि नाम परिवर्तन कानूनसम्मत था, बचाव पक्ष के लोगों का मानना है कि सही नाम परिवर्तन को गलत सिद्ध करने के लिए नामांतरण पंजी के आदेशों में फर्जी प्रविष्टि की गयी ताकि लोगों को फसाया जा सके . इस मामले में तत्कालीन पटवारीयों ने अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया और हेड राइटिंग एक्सपर्ट की रिपोर्ट पेश की जिसमें बताया गया की जिस दस्तावेज में कूट रचना के आधार पर fir किया गया गया उसका हेड राइटिंग, तत्कालीन पटवारीयों के हेड राइटिंग से नहीं मिलते. माननीय हाई कोर्ट बिलासपुर ने तत्कालीन पटवारीयों के विरुद्ध दस्तावेज साक्ष्य के अभाव में उन्हें अग्रिम जमानत दे दी. इस मामले में राजस्व पटवारी संघ तत्कालीन पटवारीयों के साथ एस पी महासमुंद और कलेक्टर महासमुंद से मिला और उनसे fir निरस्त करने की माँग की. उन्होंने माँग की पुलिस महानिदेशक के पत्र दिनाँक 13/6/2010 के निर्देशों की अनदेखी कर बिना प्रारम्भिक जाँच के fir दर्ज किया गया है जो सुप्रीम कोर्ट के WP(Cr)68/2008 के निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन है अतः बेकसूर व्यक्तियों पर लगा fir तुरंत हटाया जावे